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छत्रपति शिवाजी एक महान योद्धा- Motivational Story in Hindi

सन 1627 ईस्वी! पूरे भारत पर मुग़ल साम्राज्य का अधिकार था। उत्तर में साहजहां तो वीजापुर में सुलतान मोहमद आदिलशाह और गोलकोंडा (दक्षिण में) में सुल्तान अब्दुल्ला कुतुबशाह ने अपना कब्ज़ा जमा रखा था।  

 

आदिलशाह की सेना में एक मराठा सेना अध्यक्ष था, जिसका नाम था शाहजीराजे भोसले। 

 

शाहजी भोसले आदिलशाह की सेना में एक उच्च पद पर आसीन थे। 19 फरवरी 1630 में महाराष्ट्र में जुन्नर के समीप शिवनेरी किले में उनके और जीजाबाई के यहां एक पुत्र का जन्म हुआ। स्थानीय देवी शिवाय के नाम पर पुत्र का नामकरण हुआ जो आगे चलकर पूरे विश्व में “छत्रपति शिवजी महाराज” के नाम से विख्यात हुए। 

 

शिवाजी के पिता काफी समय तक घर से दूर रहे थे और इसलिए बचपन में उनकी देख-रेख माता जीजाबाई और गुरु दादो जी कोंडदेव ने की।

दादो जी ने शिवाजी को युद्ध कौशल और नीति शास्त्र सिखाया तो माता जीजाबाई ने हिन्दूधार्मिक कथाओ से उनका मनोबल बढ़ाया

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दादोजी का जब 1647 में निधन हुआ तब उनका ये मानना था कि शिवाजी अपने पिता की ही तरह आदिलशाह की सेना में  उच्च पद पर आसीन होंगे।  लेकिन छत्रपति शिवाजी का जन्म किसी अद्भुत कार्य के लिए हुआ था। 

 

शिवाजी बचपन से ही बहुत ही साहसी और बुद्धिमान व्यक्ति थे।  शिवाजी की माता बहुत धार्मिक प्रवर्ति की महिला थी और इसलिए बचपन में शिवाजी को उनकी माता महाभारत , गीता और रामायण जैसी पौराणिक कथाएं सुनाया करती थी, जिसका असर ये हुआ की छोटी सी उम्र में ही छत्रपति शिवाजी के अंदर एक नेचुरल लीडरशिप की क्वालिटी समाहित हो गयी। 

 

हालाकिं छत्रपति शिवाजी के पिता जी एक मुग़ल राजा के यहाँ कार्यरत थे और एक उच्च पद पर थे लेकिन शिवाजी के मन में ये बात बचपन में ही चुभ गयी थी कि विदेशी ताकतें हमारे यहां आ कर और हमारे लोगो पर ही हुक्म जमा रहे है। शिवाजी से अपने मराठा लोगो कि ऐसी  गुलामी भरी जिंदगी देखी नहीं जाती थी।

 

शिवाजी ने ठान लिया था कि अपने लोगो को इन मुगलों से स्वतंत्र कराना है। शिवाजी अपनी 16-17 की उम्र से ही मराठाओ को मुगलो के खिलाफ करना शुरू कर दिया था। खेल खेल में किले पर फ़तेह करना सिखाने लगे ,अपने लोगो के सामने उनके अधिकार की बाते करने लगे ताकि लोगो में देशभक्ति की भावना उत्पन हो।

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शिवाजी महाराज को बचपन में उनके दादाजी मालोजी भोसले राजनीति और युद्ध के गुर सिखाया करते थे और इस कारण बचपन से ही उनमे एक लीडरशिप की क्वालिटी समाहित हो चुकी थी। 

 

छोटी सी उम्र से ही उन्होंने लोगो को अपने साथ जोड़ना शुरू कर दिया था और खेल खेल में उन्हें किला जीतना , युद्ध लड़ना और देश भक्ति की भावना उजागर करने जैसे कार्य शुरू कर दिया था।  

 

मात्र 15 वर्ष की आयु में उन्होंने आदिलशाही अधिकारीयों को रिश्वत दे कर अपनी और करना शुरू कर दिया और देखते देखते तोरणा किला, चाकन का किला और कोंढाणा किले को अपने अधिकार में कर लिया उसके बाद उन्होंने अबाजी सोनदेव की मदद से थाना ,कल्याण और भिवंडी के किले को मुल्ला एहमद से छीन कर अपने अधिकार में कर लिया।

छत्रपति शिवाजी शक्तिशाली होने के साथ साथ बुद्धिमान और चतुर भी थे।

और इस प्रकार शिवाजी एक के बाद एक कई किलो को अपने अधीन करते गए।  जब आदिलशाह को छत्रपति शिवाजी के बारें में जानकारी हुई तो आदिलशाही साम्राज्य में हड़कंप मच गया। शिवाजी के नाम से ही अब दुश्मन कांपने लगे थे। और इसलिए शिवाजी को रोकने के लिए आदिलशाह ने शिवाजी के पिता शाहजी को गिरफ्तार कर लिया।

 

लेकिन छत्रपति शिवाजी ने हिम्मत नहीं हारी और अपनी बुद्धि से काम लिया । उन्होंने अपनी सेनाएं बड़ी और ताकतवर की और दिल्ली में शाहजहां के पास पहुँच गए। 

 

हालांकि शाहजहां भी मुसलमान था और आदिलशाह भी मुसलमान था, लेकिन छत्रपति शिवाजी भी राजनीती में बहुत बुद्धिमान थे।  उन्होंने शाहजहां को अपनी ओर कर लिया और अपने पिता को आदिलशाह से छुड़वा लिया।

छत्रपति शिवाजी दूरदृष्टि सोंच वाले महानायक थे।

अब तक शिवाजी एक नायक के तौर पर जाने जाने लगे थे। आदिलशाह इस बात से बहुत परेशान हो चुका था। उसने शिवाजी को मारने हेतु अपने सबसे बड़े सेनापती अफजल खान को भेजा।  अफजल खान बहुत ताकतवर और कद काठी में बहुत विशाल था।  अफजल खान ने शिवाजी को धोके से मारने की सोची। 

 

अफजल खान ने शिवाजी को संधि के लिए प्रस्ताव भेजा और अकेले मिलने के लिए बोला।  शिवाजी भी संधि के लिए राजी हो गए। अफजल खान ने एक शर्त रखी , कि मुलाकात के समय न तुम्हारे पास कोई सेना न मेरे पास कोई सेना होगी, न तुम्हारे पास कोई अस्त्र शस्त्र न मेरे पास कोई अस्त्र शस्त्र होगी।  

 

मुलाक़ात का दिन और समय तय हुआ।  छत्रपति शिवाजी से ढाई गुना लम्बा चौड़ा  अफजल खान आ कर गले मिलने लगा शिवाजी से, और उसके तुरंत बाद शिवाजी के पीछे  पीठ पर खंजर घुसा दिया। 

लेकिन शिवाजी भी कोई छोटे मोठे खिलाड़ी नहीं थे।  वे दूर दृष्टि विचार वाले थे।  10 तरह से एक ही काम को अंजाम देने का रास्ता निकाल लेते थे। .

 

वे पहले ही भाप गए थे कि अफजल शाह इतनी आसानी से संधि को तैयार नहीं हो सकता।  जरूर इसकी कोई सोची समझी चाल हो सकती है। शिवाजी पहले से तैयार थे।  उन्होंने एक ऐसी लोहे कि बुलेट जैकेट पहनी हुई थी जिससे कितने भी खंजर डालो, अंदर घुस नहीं सकता। 

 

अफजाल शाह कि इस हरकत पर शिवाजी ने तुरंत हाथ पीछे से खींचा और अपने सिंहनख से अफजल खान का पेट चीर दिया। उसके बाद अफजल शाह कि सेना को खदेड़ प्रताप गढ़ का किला जीत लिया।

 

छत्रपति शिवाजी महाराज यही नहीं रुके , इसके बाद उन्होंने रुस्तम जमान के साथ युद्ध लड़ी और इस युद्ध में भी शिवाजी महाराज ने अपनी कौशल युद्ध रणनीति से जीत हासिल की।

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एक महान मार्गदर्शक और कुशल रणनीतिकार थे छत्रपति महाराज।

किसी भी युद्ध को जीतने के लिए सही दिशा में मार्गदर्शन और कुशल रणनीति का एहम योगदान रहता है।  और ये दोनों खूबी मराठा महाराज छत्रपति शिवाजी में कूट कूट कर भरी थी।  

 

एक बार आदिलशाह ने अपने सेनापति सिद्दी जोहर को शिवाजी को मारने के लिए भेजा।  शिवाजी उस समय पन्हाला किले में थे। 

 

सिद्दी जोहर ने अपनी एक बड़ी सेना के साथ  किले को चरों और से घेर लिया। यह देखते हुए छत्रपति महाराज ने अपनी कुशल रणनीतिकार का परिचय देते हुए सिद्दी जोहर को मिलने का न्योता दे दिया और दूसरी और आदिल शाह को सन्देश भिजवा दिया की सिद्दी जोहर उनसे गद्दारी कर रहा है। 

 

सिद्दी जोहर शिवाजी के साथ मिल कर आपके खिलाफ रणनीति तैयार कर रहे है। फिर क्या था सिद्दी जोहर और आदिल शाह के बीच युद्ध छिड़ गयी जिसका फायदा उठा कर शिवाजी महाराज अपने 5 हजार सिपाही के साथ पन्हाला किले से बहार निकल आये।

छत्रपति शिवाजी महाराज के छापामार युद्ध से खौफ खाती थी मुगलों की सेना

शिवाजी महाराज को छापा मार युद्ध (गोरिल्ला युद्ध ) में महारत हासिल थी।  छापा मार युद्ध एक प्रकार से छुप कर युद्ध करने की नीति है। गोरिल्ला युद्ध पद्धति अपनाते हुए महाराज छत्रपति शिवाजी ने छोटी सेना होने के बावजूद कई युद्ध जीते।

महिलाओ का बहुत सम्मान करते थे

छत्रपति शिवाजी महाराज को दुनियां यूँ ही नहीं पूजती है।  छत्रपति शिवाजी जितने बहादुर थे उतने ही दिल के साफ़ और एक सच्चे देशभक्त भी थे। दुश्मन उनके नाम से ही कंपते थे।

 

उनसे युद्ध करने की जुर्रत किसी में न था।  बावजूद इसके उनका अपना नियम था की निर्दोष नागरिको पर प्रहार नहीं करना , बच्चो , माताओं और महिलाओ का सम्मान करना। दुश्मन की माँ , बहनों को भी शिवाजी वही सम्मान देते थे जो वह अपनी माता जीजाबाई को देते थे। 

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शिवाजी महाराज मुसलमानो के खिलाफ नहीं थे

शिवाजी को आज भी कई लोग मुसलमानो के खिलाफ बताते है जो की सच बिलकुल नहीं है।  शिवाजी महाराज मुसलमानो के खिलाफ नहीं थे बल्कि मुगलो के खिलाफ थे। 

 

कई मुसलमान तो उनके सेना में ऊचें पद पर आसीन थे , यहां तक की उनके अंगरक्षक भी कुछ मुसलमान थे , कुछ दोस्त मुसलमान थे तो शिवाजी मुसलमान के खिलाफ कैसे हो सकते है।

छत्रपति शिवाजी महाराज से हम बहुत कुछ सीख सकते है।  उनके नियमो को, उनकी आदतों को ,उनके विचारों को अपना कर हम भी अपना जीवन सफल बना सकते है।  यहां तक की उनके विचारों और आदतों को हम अपने बिज़नेस तथा अन्य कार्यों में भी अपना सकते है और सफलता हासिल कर सकते है। 

 

दोस्तों शिवाजी महाराज की यह मोटिवेशन स्टोरी (Motivational story in hindi) कैसी लगी हमें कमेंट में लिखना न भूलें। 

 

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