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नमस्कार दोस्तों। हिंदियोगी के इस ब्लॉग पोस्ट “समय का सही उपयोग” (motivational story in hindi) में आपका स्वागत है।
इस कहानी के माध्यम से हम ये समझने की कोशिश करेंगे की हम कई बार अपना सबसे कीमती समय किसी ऐसे कार्य को करने में बिता देते है जिसको हम कभी भी थोड़े पैसे दे कर या किसी और माध्यम से आसानी से पूरा कर सकते है। और बाकी के बचे हुए समय में हम कोई दूसरा महत्वपुर्ण कार्य कर सकते है।
लेकिन हमें ठीक से गाइडेंस ना मिलने के कारण हम ऐसे व्यर्थ के काम को पूरा करने में सालों बिता देते है और बाद में एहसास होता है की जो काम हम मिनटों में होना चाहिए था उसके लिए हमने साल भर का समय लगा दिया।
तो आइये बिना टाइम गवाए शुरू करते है inspirational story in hindi
एक बार स्वामी विवेकानंद किसी काम से जा रहे थे। जिसके रास्ते मे एक नदी थी। स्वामी जी उसे पार करने के लिए नाव का इंतज़ार करने लगे। तभी उनके पास एक साधु जी आये।और उनसे पूछा “क्या आप ही स्वामी विवेकानंद हैं” जिस पर स्वामी जी विनम्रता पूर्वक बोले ” जी मैं ही हूँ स्वामी विवेकानंद” ।
साधु जी ने पूछा “यहाँ क्यों खड़े हैं आप?
” मुझे नदी के उस पार जाना है, मैं नाव की प्रतिक्षा मे हूँ” स्वमी जी ने सहजता से कहा।

साधु महाराज को खुद पर थोड़ा अहनकार् था और स्वामी जी के लिए जरा इर्ष्या भी थी कि वो स्वामी जी से ज्यादा बुद्धिमान और सिद्धियों से युक्त है लेकिन फिर भी स्वामी जी की ख्याति है किंतु उनको कोई जानता तक नही।
वह बोले “आप इतने प्रख्यात हैं। इतने लोग आपको जानते हैं मैंने तो बड़ा नाम सुना था आपका कि आप की अध्यात्मिक और ध्यान की शक्ति बहुत प्रबल है लेकिन आप तो एक नदी भी अपने दम पर पार नही कर सकते। हुँह!”
कहते हुए वो नदी पर चलने लगे और चलते हुए वह नदी के दूसरे छोर पर पंहुच गए और उसी तरह वापस भी आ गए।
“देखो मैं आपसे ज्यादा सक्षम और कुशल हूँ ।मैं इस नदी पर चल सकता हूँ । मेरी सिद्धियाँ, ध्यान और ज्ञान आपसे ज्यादा है लेकिन फिर भी मैंने खुद का कोई बखान नही करवाया।”
स्वामी जी इस पर बस मुस्कुराये इतने मे नाव वाला आ गया स्वामी जी ने साधु जी को बड़े प्रेम और आदर से नाव पर अपने साथ बैठाया। दोनो ने नाव पर बैठ कर नदी पार की स्वामी जी ने नाव वाले को एक रुपए दिये।
और फिर साधु जी से पूछा “आपने चल कर नदी पार करने की ये ध्यान, विद्या कितने समय मे सीखी? “
साधु महाराज गर्व से बोले ” पूर्ण रूप से पन्द्रह वर्ष। “
स्वामी जी फिर मुस्कुराये और बोले “क्या इससे किसी दूसरे का भला हुआ?.. नही! जब आपकी प्राप्त की गयी विद्या से समाज का लेश मात्र भी भला न हो सके तो वो विद्या व्यर्थ है। सोचिये आपने अपने जीवन के पंद्रह वर्ष एक ऐसी विद्या पर खर्च किये जिसका कोई औचित्य ही नही, ये काम तो आप पचास पैसे मे भी कर सकते थे।और यही समय यदि आप समाज के काम मे लगाते तो समाज का भला होता। मैंने अपना समय समाज की भलाई मे लगाया इसीलिए लोग मुझे जानते हैं। “
दोस्तों आज के समय में व्यर्थ के काम करने वालो से दुनिया भरी परी है। व्यक्ति ऐसे कामों में व्यस्त है जिसका ना तो उसके स्वयं के जीवन में कोई उपयोग है और ना ही उस काम से किसी दूसरे व्यक्ति का भला हो सकता है।
उदाहरण के लिए आज बच्चे घर में बैठे मोबाइल अथवा कम्प्यूटर पर गेम खेलने में व्यस्त है, जिसके कारण ना तो वे ठीक से पढाई कर पाते है और गेम खेलते हुए ना तो कोई ऐसा कार्य कर करें है जिससे उनका, उनके परिवार या देश का भला हो सके।
समय बहुत कीमती है और समय का उपयोग करते हुए हमें कुछ ऐसा कार्य करते रहना चाहिए जिससे खुद का और दूसरो का भी भला हो।
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धन्यवाद।